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Hindi Seminar
February 20 @ 10:30 am
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साहित्य पठन-पाठन और अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया में यह बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि लेखक उसमे कहाँ और किस हद तक मौजूद है। उसका आत्म तत्व किस तरह अभिव्यक्त हुआ है। यह बात साहित्य पठन, अध्ययन और विश्लेषण की दृष्टि से अनिवार्य हो जाती है। इससे अर्थ निर्मिति के व्यावहारिक और समसामयिक पक्ष उभर कर सामने आते हैं जिनसे साहित्य के अर्थ विस्तार में सहायता मिलती है। कई अर्थो के बोध प्राप्त होते हैं। कोई भी सृजन कर्म आत्म तत्व से मुक्त नहीं होता। लेखक के व्यक्तिगत अनुभव, भाव संवेदन, वैचारिक वृत्तियां एवं कहन शैली उसकी रचना के आधारभूत स्रोत होते हैं जो उसकी ‘अत्मकथामकता’ के संकेतक भी होते हैं। यह ‘अत्मकथामकता’ आत्मकथा जैसी विधा में तो होती ही है जो कि मूलतः नितांत वैयक्तिकता से संपृक्त रचना है, लेकिन इसकी मौजूदगी साहित्य के सभी विधाओं में हो सकती है। यह संवाद और विवाद का विषय है कि वैयक्तिकता की स्वीकार्यता किसी रचना में कैसी भूमिका निभाती है और अपने समय और सामयिक बोध को कितनी ईमानदारी से गढ़ती है। यही वह पक्ष है जो एक लेखक की रचना को अन्य लेखक से भिन्न और विशिष्ट बना सकती है।
प्रस्तुत विचार को लेकर “आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय” के हिंदी विभाग द्वारा आगामी 20 फरवरी को एक सेमिनार आयोजित किया जा रहा है जिसमे आपकी सक्रिय सहभागिता की अपेक्षा है। इस विषय की व्यापकता की दृष्टि से यह संगोष्ठी एक शुरुआत है, जिस पर आगे भी चर्चा और विमर्श की ज़रूरत है।